गाजीपुर। तहसील मुहमदाबाद क्षेत्र में गोली से घायल होने के बाद भी शेरपुर के लाल यमुना गिरि ने अंग्रेजों के मजिस्ट्रेट मुनरो के सामने नहीं मांगी माफी इसलिए उन्हें 5 साल जेल में बहुत कष्टदायक परेशानियों का सामना करना पड़ा।
आइए सुनते हैं जमुना गिरि कि उनके परिजनों से पूरी कहानी।
भारत का वीर जवान हूं मैं, ना हिंदू, ना मुसलमान हूं मैं, जख्मों से भरा सीना है मगर, दुश्मन के लिए चट्टान हूं मैं, भारत का वीर जवान हूं
पूर्व ग्राम प्रधान शेरपुर विद्यासागर गिरी ने बताया कि जमुना गिरि हमारे बड़े पिताजी थे ,प्राचीन भारत का इतिहास में शेरपुर के युवाओं ने स्वतंत्रता संग्राम का आंदोलन बहुत ही बढ़ चढ़कर के भागीदारी निभाने का काम किए थे। सबसे अधिक शहादत देने वाले नाम शेरपुर का स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। इस मिट्टी से जन्मे जज्बाती छात्रों ने जमुना गिरी से कहा कि आपके बिना स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन अधूरा रहा है। आत्म साहस की प्रतिमूर्ति जमुना गिरी का साहस और बहादुरी से क्षेत्र के युवाओं के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के प्रति समर्पण भावना में कूट-कूट कर भरी दिये थे। महात्मा गांधी के आंदोलन भारत छोड़ो से प्रेरित होकर वह छात्र जीवन में ही स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में कूद पड़े थे। स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरित होकर शेरपुर के 8 युवाओं ने 18 अगस्त 1942 को तहसील मोहम्मदाबाद के मुख्यालय में तिरंगा फहराने के दौरान देश की आन बान शान के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी और शेरपुर के जमुना गिरि छात्र जीवन में ही लड़ाई में कूद गए यही नहीं उन्हें तीन से चार दिनों में कई स्कूलों के छात्र को एकत्रित किया । और गौसपुर स्थित हवाई अड्डे को आग लगा दिया।इसमें अंग्रेजों द्वारा जबरदस्त फायरिंग हुई जिसमें जमुना गिरी और रामनिवास राय को गोली लग गई थी आज भी जब वीरों को याद किया जाता है तो छात्रों का महत्व गर्व से ऊंचा हो जाता है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा मुंबई ग्वालियर टैंक मैदान में अगस्त क्रांति का मैदान रहा 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा की गई जिनको के हवाले भारतीय वासियों ने जोश लगाते हुए इन जिला मुख्यालय स्थित विद्यालय में पढ़ाई कर रहे शेरपुर के जमुना गिरी ने 11 अगस्त 1942 को हाई स्कूल डिवीजन तथा विक्टोरिया गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ रहे थे। छात्र मित्रों को एकत्रित करके भारत मां को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए स्वतंत्र आंदोलन में जमुना गिरि कूदकर अगले दिनों अगले दिन 12 अगस्त को तीन विद्यालयों में छात्र ने हड़ताल कर दिया तभी 13 अगस्त को आंदोलन का हिस्सा लेने वाले की रणनीति बनाने के बाद जमुना गिरी ने अपने सहयोगी मित्रों के साथ 14 अगस्त 1942 को गौसपुर के पास स्थित हवाई अड्डा पर आग लगा दी।
मैं जला हुआ राख नहीं अमरदीप हूं, जो मिट गया वतन पर, मैं वह शहीद हूं ………..जमुना गिरी
इसी से गाजीपुर की धरती वीरों की धरती कहा जाता है। जमुना गिरि अमर रहे अमर रहे।
जय हिंद