गाज़ीपुर। एशिया के कुछ एक बड़े गांवो में शुमार हमारा शहीदी गांव शेरपुर जो अपनी पहचान का मोहताज नहीं है (सन 1942 का जन विद्रोह और फिर एक दिन में ही गांव के आठ लाल अपने प्राणों की आहुति हंसते देश की स्वतंत्रता के लिए दे दिए और अनगिनत नवयुवक स्वतंत्रता संग्राम की हवन कुंड में हंसते हुए अपने आपको झोंकने से नही कतराए)। आज वही गांव सरकारी उदासीनता के चलते अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है और उसपर गंगा के कटान का बड़ा खतरा मंडराने लगा है। और यह कुछ महीनों कुछ सालों से नहीं दशकों से उदासीनता का शिकार बना हुआ है यहां। चुनाव में बड़े-बड़े दिग्गज आते हैं वोट के लिए बहुत सारे लोक लुभावन वादे भी करते हैं कुछ लोग तो भीष्मपितामह की तरह गंगा की धारा बदलने तक की बात कर चुके हैं लेकिन धरातल पर देखा जाए तो वह केवल राजनीतिक रोटियां ही सेंकी गई है गांव के अस्तित्व से उनका कोई सरोकार या लेना देना नहीं होता है। इसी गांव का एक भाग सेमरा पहले से ही ऐसी कटान से अपना अस्तित्व गवां चुका है और आज भी वहां के रहने वाले लोग विस्थापितों की जिंदगी जी रहे हैं। लेकिन ये चुनावी सपोले तभी वोट रूपी दूध पीने आते हैं जब चुनाव आता है और उसके बाद फन उठाए उन्ही वोटर को डसने के लिए तैयार रहते है। अभी कान्हा एकदम से सरासर अन्याय होगा कि इस पर कुछ काम नहीं हुआ है बरसात से पहले थोड़ा सा प्रशासन इस गांव के लिए एक्टिव मोड में आता है बोल्डर गिराता है और बाढ़ में बह जाता है। वास्तव में अगर कहा जाए तो मात्र दिखावे के लिए प्रशासन गांव के लिए काम करता है जबकि वास्ता में ये काम भी अपने पाकिट को भरने के लिए करता है क्योंकि बोल्डर चाहे दो ट्रक गिराया दो हजार ट्रक बरसात से ठीक पहले कागजी खाना पूर्ति जोरो पर करके बाढ़ में बह दिया जाता है। इसमें माननीय लोगों के साथ साथ प्रशासनिक अधिकारियों की ही केवल बल्ले बल्ले रहती है गांव वासियों के लिए तो अस्तित्व का संकट हमेशा बना ही रहा है। समय रहते अगर यह काम नहीं हुआ तो हमारा ऐतिहासिक गांव गंगा में विलीन हो जाएगा। इतनी बड़ी आबादी फुटपाथ पर आ जाएगी इतने सारे लोग बेघर हो जाएंगे और जब वह भयावह स्थिति हमारे सामने आएगी फिर क्या होगा कैसा वह दृश्य होगा इसका सोच सोचकर भी आत्मा हिल जाती है आने वाला वर्ष प्रदेश में चुनावी वर्ष होगा और चुनावी वर्ष में इस तरह की समस्याओं के लिए वादे और दावे फिर से जरूर किए जायेंगे। लेकिन यह ऐतिहासिक गांव गंगा में विलीन होकर इतिहास बने उससे पहले बच जाए और अब तो सही में भगवान ही मालिक है इस त्रासदी का।
पत्रकार रविदेव गिरि